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रिश्तों का गणित

जीवन की अनमोल निधि है रिश्तें .कुछ बनाये जाते है तो कुछ अपने आप बन जाते है .कुछ जन्म से हमारे साथ जुड़े होते है तो कुछ रिश्तों का दामन हम विवाहोपरांत थामते है .कुछ रिश्ते दिलों में बसे होते है तो कुछ दिमाक पर हावी होते है .कुछ होते है ऐसे भी रिश्ते जो वक़्त के साथ धुंधले हो जाते है, जबकि कुछेक वक़्त के साथ पनपते है .कुछ रिश्तों को फलने-फूलने के लिए स्नेह की खाद और आशीर्वाद की छाँव की जरुरत होती है ,जबकि कुछ रिश्ते संघर्षों और जज्बातों की कड़ी धुप में भी मुस्कुराते है .कुछ होते है ऐसे दृढ रिश्ते, जिनका कोई नाम नहीं होता, कोई परिभाषा नहीं होती,जबकि कुछ रिश्ते होते है सिर्फ नाम के ,संबोधन के ,जिनमे कोई अहसास नहीं होता .कुछ रिश्ते होते रक्त के तो कुछ होते अहसासों के जज्बातों के .कुछ रिश्तों के साथ जिंदगी का सफ़र होता सुहाना ,तो कुछ रिश्ते बोझ ढोते जिंदगी का .कोई रिश्ता हर पल तिल-तिल मरता तो कोई रिश्ता मर कर भी अमर हो उठता .किसी ने सच कहा है .."अगर देखना हो कि आप कितने अमीर हो तो अपनी दौलत को मत गिनना , अपनी आँख से आंसू गिरना ,और देखना कि कितने हाथ इसे समेटने के लिए आगे बढ़ते है &qu

यादें

जिंदगी के चंद लम्हों का लेखा-जोखा है यादें  तमाम खट्टे-मीठे संस्मरणों का एक चलचित्र है यादें  यादें एक फूल है  जिसकी खुशबू जीवन को महकाती है  यादें एक मरहम है  जो उभरे जख्मों को सहलाती है  जीवन के सुख-दुःख का मिश्रण है यादें  तन्हाई में किसी अपने का अहसास है यादें  लेकिन कभी-कभी ; अपनों के बीच से तन्हाई में ले जाती है यादें  यादें एक टीस है  जो जले पर नमक छिड़कती है  यादें एक इतिहास है  जो हर पल स्वयं को दोहराती है  किसी अधूरे काम का आगाज़ है यादें  आसुंओ को खिलखिलाहट में बदलती है यादें  यादें एक कलम है  जिससे जिंदगी परिभाषित होती है  यादें अनुभवों की एक किताब है  जिसके जरिये मंजिल हासिल होती है  किसी अज़ीज़ का अहसास कराती है यादें  सच्चे दोस्त की भांति साथ निभाती है यादें  लेकिन कभी-कभी ; कडवे अनुभवों के घूंट भी पिलाती है यादें  यादें एक गीत है  जो जीवन को मधुर बनाती है  यादें एक बैशाखी है  जो गिर-गिर के संभलना सिखाती है  बचपन के मासूम संसार में ले जाती है यादें  भूले-बिसूरे दिनों का स्मरण कराती है यादें  लेकिन कभी-कभी ; अपनों से दूर होने का गम भी दे जाती

भगवत गीता पर प्रतिबन्ध ?

भारत सदैव ही दुनियां का आध्यात्मिक गुरु रहा है , यहाँ के वेद-पुराण,पवित्र ग्रन्थ ,योग और देवी-देवता पुरातन काल से विश्व में चर्चा और शोध के विषय रहे है.वैसे तो सभी ग्रन्थ अपने-आप में पूर्ण है , लेकिन उन सबमे गीता का ज्ञान एक अलग ही दर्शन भारतीय संस्कृति को देता है.गीता धर्म का वो सरल स्वरुप है जो जीवन के वास्तविक दर्शन को सहज ही सिखा देता है ......ऐसे पवित्र ग्रन्थ पर प्रतिबन्ध लगाना वाकई चिंता का विषय है और इसे 'उग्रवादी ग्रन्थ ' करार देना तो तमाचा है हम भारतियों पर .                     भगवत गीता हमारी अमूल्य धरोहर है ,सांस्कृतिक विरासत है ,अमर वाणी है सच्चाई की और सही मायनों में भारतियों की परिभाषा है .सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याण का ग्रन्थ है गीता .गीता का ज्ञान उस वक़्त की कसौटी पर भी खरा था और आज के युग में भी उसके ज्ञान की सार्थकता पर कोई अंगुली नहीं उठा सकता ........ऐसे में उस पर प्रतिबन्ध लगाना और वो भी ऐसे देश और ऐसी संस्था द्वारा जो सदा से अपनी धार्मिक सहिष्णुता के लिए जाना जाता रहा है ,वाकई चिंता का विषय है .                         गीता के अनुसार अन्याय करने

दूनियाँ वाले

हम इतने भी बुरे ना थे  जितना लोगो ने हमे बना दिया  हम तो चाहते थे दूनियाँ को प्यार से जीतना , नहीं मालूम था कि . खुद को ही हार जायेगे ! आये थे हम तो प्यार बाँटने  लेकिन खुद ही बँट कर रह गए  सोचा था  बुराई को  अच्छाई बना देगे  नहीं मालूम था कि ; खुद ही बुरे बन जायेगे ! चाहते थे लोगो के दिलों को रोशन करना  लेकिन खुद ही अंधेरो में खोकर रह गए  तकलीफ में हर किसी को दिया सहारा  लेकिन अपने ग़मों में , सर टिकाने  हमे किसी का कंधा ना मिला  दूसरो के पोंछते थे आंसू हम लेकिन हमारे ही समंदर को कोई किनारा ना मिला ! लोगो को दिया करते थे दिलासे हम  लेकिन ; हमारे ही सब्र का बाँध हमी से टूट गया  सबकी खुशियाँ बांटी , दुखो: में शरीक हुए  लेकिन हमारी खुशियाँ किसी से देखी ना गई  और ; हमारे दर्द-ए-दुःख में लोगो ने हम से किनारा कर लिया ! सबकी महफ़िलों की शमां बने हम  लेकिन; हमारी ही महफ़िल किसी को रास ना आई 

खो गया बचपन

"ये दौलत भी ले लो, ये शौहरत भी ले लो मगर मुझको लौटा दो मेरे बचपन का सावन वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी " मशहूर ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह की ये पंक्तियाँ जीवन के उस खुबसूरत मोड़ की याद दिलाती है,जो आज के दौर के बच्चों की जिंदगी में आता ही नहीं......और शायद इसीलिए आज के बच्चे इन पंक्तियों की पीड़ा भी नहीं समझ सकते . जिंदगी के इन सुंदर लम्हों से महरूम आज के बच्चे,बच्चे ही नहीं रहे . उनका बचपन खो गया है,इस व्यस्त दुनियां में , जहाँ सब तेजी से आगे बढे जा रहे है , किसी को किसी के लिए समय नहीं.........बिलकुल इसी तरह बच्चों को भी जल्दी से जल्दी बड़ा होना है.उन्हें नहीं मालूम कि वे क्या चीज़ खो रहे है . आज उन्हें माँ के आँचल की नहीं बल्कि बाज़ार में आये नए gadgets की तलाश है .रात को सोने के लिए माँ की लौरी नहीं बल्कि कानफोडू संगीत की जरुरत महसूस होती है . माना की आज के बच्चे शातिर दिमाक होते है , कंप्यूटर से भी तेज चलता है इनका दिमाक.......दो टुक बातों से समस्या का हल कर देते है ........कानों में headphone लगाये ये आज की पीढ़ी बड़ों की नसीहतों को अपने पास भी नहीं फटकने देती.....हमे

शंका

मन के एक कोने में दुबक के बैठी , सहमी सहमी सी अपना वजूद बनाती शंका.............................निराधार शंका ! खुशियों पर प्रश्न चिन्ह लगाती करने....न करने की आपा-धापी में और उलझाती, दुखों को और बढाती , सुखों को संशय में डालती शंका..............................निराधार शंका ! अपनों पर संदेह करवाती परायों को और पराया करती तरसाती , हलकी सी मुस्कराहट को , और दिल खोलकर हँसने की लालसा को शंका..............................निराधार शंका ! हर विश्वास को अविश्वास में बदलती रिश्तों के फंदों में फंसाती जिंदगी के चक्रव्यूह को उलझाती सहायता लेने को झिझकती तो सहायता देने में भी सहमती शंका.............................निराधार शंका ! लेकिन यही शंका , कभी-कभी आधार भी देती , सच्चाई को सामने भी लाती और निराधार ना कहलाती यह शंका......................सब तोड़ देती तो कभी कभी कुछ शायद जोड़ भी देती

थोडा सा झूठ

चलो, खुशियाँ बांटें हम किसी के उदास मन की परतें उतार दबी मुस्कुराहट को ढूंढ़ लाये हम आंसुओं को आँचल के मोती बना ले हमदर्द बनकर किसी के दुखों को बाँट ले हम चलो, बांटते है खुशियाँ आज हम और तुम जिंदगी की आप-धापी से बाहर निकले दिमाक से नहीं, थोडा दिल से सोचे बेसिर-पैर की बातों को ऊपर से गुजर जाने दे नासूर बने किसी के घावों को स्नेह का मरहम लगाये हम अपनों को पराये बनते देखकर भी मुस्कुराएँ.................................... और हाथ बढ़ाये .....आओ चलो, परायों को भी अपना बनायें हम अपनी खुशियों को कुछ यूँ बिखराएँ कि ; फिजा की फितरत बदल जाए हवा में खुशबू बिखर जाए पतझर में बसंत आ जाए खुशियों का इन्द्रधनुष खिल जाए चलो, खुशियाँ बाँटते है हम माना कि..... झूठ बोलना पाप है लेकिन ग़र, चोट पहुंचाता है सच छलनी कर देते है दिलों को सत्य वचन तो ; टूटे दिलों को जोड़ते है चलो, थोडा सा झूठ बोल आते है हम और तुम

नानी बाई को मायरो

' नानी बाई को मायरो ' राजस्थान की भोत ही प्रसिद घटना म स एक है.जूनागढ़ क नरसी भक्त की लाडली और बीरा ब्रह्मानंद की ' नानकी ' की कहाणी ह या.नरसी जी खूब धूमधाम स घणो दायजो देक आपरी चिड्कली न परणाई. पर, दिनमान कै बेरो के लिख राखी थी,नरसिजी आपकी ५६ करोड़ की संपदा दान देकै मोड़ा होगा. बठिण नानीबाई क गोद म कुलदिपिका आई.सासरा हारला न या बात चोखी कोणी लागी और बे नानीबाई न सतावै लागा.आश्रम म नर्सिजी को बेटो अकाल क चालता काल को ग्रास बनगो.नानीबाई बीरां क खातर राखी ली थी पर या बात सुणकर बाई को कालेजो फाटन लागगो......पर विधि क विधान क आगै कोई की ही कोणी चाल,बा राखी नानीबाई कृष्णजी क बांध दी. इ तरिया नरसिजी कृष्ण भक्ति म रमगा और नानीबाई गृहस्थी म. समय बितन क सागै नानीबाई की लाडली कुंवरी को ब्याव मांड दियो.सासरा हरला मायरा खातर भोत बड़ी-बड़ी फ़रमाइश कर दी और सोच्या क इतो बड़ो मायरो भरणे की नरसिजी की औकात कोणी और बे ब्याव म कोणी आवगा,पर नरसिजी तो मायरो भरणे की सारी जवाबदारी आपक सावरिया न सोप क नचिता होगा और कुहा दियो क मैं ब्याँ म जरुर आउंगो.नानीबाई की आंख्या म ख़ुशी का आंसू झरै लागा

यात्रा

मैंने अपने जीवन में बहुत सी यात्राये की है,कई मनोहारी दृश्यों को अपने कैमरे में ही नहीं बल्कि अपने दिल में भी उतारा है.उनकी स्मृतिया आज भी मेरे मानस पटल पर अंकित है,लेकिन जो यात्रा मुझे सबसे अधिक आनंदित करती है वो है मेरे पैतृक स्थान 'राजस्थान' की यात्रा. हर साल राजस्थान की यात्रा होती है ,फिर भी मालुम नहीं क्या है वहां की मिटटी में जो मेरी हर यात्रा को भीनी खुशबू से भर देती है.मेरा पैतृक स्थान है झुंझुनू ,जो सिर्फ पर्यटन की दृष्टि से ही नहीं बल्कि देश के कई होनहार-विरवानो की जन्मभूमि है.मुंबई में रहने के बावजूद अपने पैतृक स्थान की यात्रा करने के किसी भी मौके का मै लोभ-संवरण नहीं कर पाती .मेरी लोभ-पिपासा ही है की हर साल भयंकर गर्मी में राजस्थान पहुँच जाती हूँ.तब लगता है की सूर्य देवता ने अपनी सारी किरणों को इसी राज्य में भेज दिया हो और ओजोन परत का छेद भी यही है.लेकिन लू के थपेड़े भी हमें रोक नहीं पाते. पुरे साल इस यात्रा का इंतज़ार रहता है और यात्रा पूरी होने पर अगली यात्रा की तैयारी.मुंबई जैसे शर की आधुनिकता ,बनावटीपन और औपचरिकताओ के बीच मेरा गावं एक बरगद की छावं